Saturday, September 16, 2006

क्यों मैं आनंद से भरता नहीं हूँ ...

क्यों मैं देता हूँ नित नये शूल ।
क्यों कर करता हूँ हर बार वही भूल ।
क्यों मैं आनंद से भरता नहीं हूँ ।

क्यों इस पर कुछ सोचता नहीं हूँ ।
और उत्तर प्रकृति में क्यों खोजता नहीं हूँ ।

आनंद बिना फ़ूल यूँ खुश़बू न उड़ाता ।
आनंद बिना सूरज ऐसे ना दमकता ।
और आनंद बिना होती ना तारों की टोलियाँ ।
इस तरह ही क्यों नहीं आता मुझे जीने में आनंद ।
देने में आनंद और सेवा में आनंद ।
त्याग में आनंद और प्रेम में आनंद ।
खुद भूख में भी माँ आनंद से बच्चों को खिलाती ।
आनंद सिर्फ़ इन्द्रियों के सुख में नहीं है ।
आनंद कोई जीवन की शर्त नहीं है ।
पर इसके बिना जीवन का अर्थ नहीं है |

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