Sunday, September 24, 2006

क्या बम का अधिकारी है .....

निरंतर होते विस्फ़ोंटों से मानवता भी हारी है ।
आज मरा वो अपना ही था अब कल किसकी बारी है ।


भारतीय चिंतन, धर्म सनातन और वसुधा फ़ुलवारी है ।
ऐसा निर्मल जीवन भाई क्या बम का अधिकारी है ।

मरते सपने, मरते अपने और मरती किलकारी है ।
नये समय की नयी समस्या विपदा यह अति भारी है ।

जिस चिंतन पर मैं इठ्लाऊँ पितरों की चितकारी है ।
जोड़ो उसमें अपना कुछ तुम अब आई तुम्हारी बारी है ।

तंत्रों को मजबूत बनाकर दंडित करें दरिंदों को हम ।
पर दोष किसी कौम पर मढ़ना सोच नहीं हितकारी है ।

6 comments:

  1. दुष्टो के कर्म न देख धर्म देखना
    भूल अतिभारी हैं.
    उठा अस्त्र और वार कर
    अगर शांति प्यारी हैं.

    ReplyDelete
  2. आज के समय में मन में उठते भावों का सही चित्रण।

    ReplyDelete
  3. संजय और रत्ना जी,

    आपकी टिप्पणी और प्रोत्साहन का ह्र्दय से धन्यवाद !!

    रीतेश

    ReplyDelete
  4. स्वार्थ, द्वेष, शोषण और हिंसा, ही बम्ब की तैयारी है।
    त्याग, प्रेम और नि:स्वार्थ सेवा, ही केवल हितकारी है ॥

    ReplyDelete
  5. भावनाएँ -सटीक चित्रण।

    ReplyDelete
  6. Reeteshji,

    Bahut hi badhiya kavita hai, padh kar bahut achha laga..

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....