Thursday, October 05, 2006

मृत्युदंड....

न्यायपालिका ने अफज़ल को
संसद पर हमले की
साजिश में दोषी पाया है
न्याय स्वरूप मृत्युदंड का

फ़ेसला सुनाया है
लेकिन कुछ लोग

मृत्युदंड को अमानवीय पाते हैं
यारों ऎसे दंड हमें भी

कभी नहीं भाते है
पर डर के बिना इंसान

कभी-कभी हैवान बन जाते हैं
साँप भी अपनी रक्षा

के लिये सिर्फ़ फ़ुफ़कारता है
पर कभी-कभी काटकर

अपने इस विकल्प की याद दिलाता है
संसद पर हमला है
भारतीय लोकतंत्र पर घात
इसलिये अफज़ल तुम नहीं हो दया के पात्र

3 comments:

  1. दुष्टो के यार ये लोकतंत्र के नायक,
    कर रहे देश से घात.
    चढ़ा दो इन्हे भी फाँसी पर,
    अफ़जल के ही साथ.

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  2. "दुष्टो के यार ये लोकतंत्र के नायक,
    कर रहे देश से घात.
    चढ़ा दो इन्हे भी फाँसी पर,
    अफ़जल के ही साथ."

    --संजय भाई, यह तो आपकी एक अलग से पोस्ट बनती है. सही है.

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  3. समीर जी आप बिलकुल ठीक कह रहें हैं ।

    संजय भाई आपने कविता का वजन बढ़ाया है ।

    आप दोनों की टिप्पणी का धन्यवाद !!

    रीतेश गुप्ता

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....