Monday, November 20, 2006

पताका धर्म की फ़हराईये....

आज बुराई अच्छाई पर हावी लगती है
अच्छाई की जीत अंत में ही क्यों होती है
पूरी फ़िल्म में हम खलनायक से सम्मोहित रहते हैं

बस नाम के लिये जीत अंत में नायक की करते हैं
टीवी पर अन्याय और कुटिलता से हम हैं रोमांचित
इसलिये करुणा और प्रेम से हम हो रहें हैं वंचित
अधर्म और बुराई की कोई गति नहीं होती
कुछ देने की क्षमता तो सिर्फ़ अच्छाई में होती
तटस्थ और मूक को भी मानेगा इतिहास दोषी
इन विरोधाभासों से स्वयं को बचाईये
धर्म-युद्ध में पताका धर्म की फ़हराईये

3 comments:

  1. सही है। मुझे लगता है अधिकतर समय हम बुराई या बुरी स्थिति के बारे में बातें करने और उसे कोसने में करते हैं।
    वही समय अच्छे कार्यों की चर्चा करने में या स्वयं कुछ अच्छा करने में लगाना चाहिये।

    ReplyDelete
  2. इन विरोधाभासों से स्वयं को बचाईये
    धर्म-युद्ध में पताका धर्म की फ़हराईये ।

    -बहुत खूब । इस रचना में यथार्थ परिलक्षित हो रहा है । सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए ।

    ReplyDelete
  3. हिमांशु एवं प्रभाकर जी,

    आपकी टिप्पणी का धन्यवाद !!

    रीतेश गुप्ता

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....