Sunday, December 10, 2006

बोगी नंबर S-8.....

छुट्टियाँ खत्म हो गई हैं
अब मुझे जाना होगा माँ
मेंने S-8 में रिजर्वेशन करा लिया है

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रत्ना अच्छा हुआ तूने फ़ोन किया
मैं कल कुछ दिनों के लिये बहन के पास जा रही हूँ
तू तो जानती है, बड़ा मन लगता है मेरा वहाँ
ले-दे के एक बहन ही तो है
पप्पू ने S-8 में रिजर्वेशन करा दिया है
स्टेशन में घुसते ही डब्बा सामने पड़ता है
रिजर्वेशन है तो दिक्कत नहीं है
दिन में बैठने को जगह मिल जाती है
रात में पेर सीधे हो जाते हैं
बड़ी अच्छी ट्रेन है, कभी लेट नहीं होती
सुरक्षित है, तड़के ही पहुँच जाऊँगी

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खबर है गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है
एक पुराना पुल S-8 पर गिर गया है
ईश्वर ने भाग्य का यह कैसा खेल रचा
लगता है बोगी नंबर S-8 में कोई नहीं बचा

मेरे जीवन का फ़ैसला भी ऎसे ही हो सकता था
सब लोगों की ही तरह मैं भी वहाँ हो सकता था
असुरक्षित सिर्फ़ हमारा जीवन ही नहीं हुआ है

मानवीय संबंधों के प्रति हम जितने असुरक्षित हुए हैं
सुख और शान्ति से उतने ही दूर हुए हैं

1 comment:

  1. Priya Bhai Reetesh,
    Bahut sundar, tumhare man se parichit hoon isliye jaanta hoon tum is kavita men kya sandesh de rahe ho. sach ki anubhuti pe ruk nahin jana hai... use pahuchana hai samaj har tah tak yahi ham sabake jeevan ka lakshya hai... khaa ke mar jaan eke liye nahin paida huye hai... satya ki samaj men sthapana karna hi ek karmayogi ka kartavya hai.
    ps: saddama aur bush pe anonymous comment mera hi hai..
    satya ke saath..
    Ravi

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....