Monday, February 19, 2007

कठिन होता है....

आसान होता है कहना
पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं
कठिन होता है पापी से नफ़रत न करना

आसान नहीं होता सुख-दुख में समान रहना
कठिन होता है दुखों में विचलित न होना
कठिन होता है शीशे का पत्थरों के बीच रहना
कठिन होता है एक घाघ इंसान के लिये
यह समझना कि दुनियाँ में
ज्यादातर लोग घाघ नहीं होते
तो फ़िर क्यों रखता है भगवान
विपरीत प्रकृति वालों को साथ-साथ
जैसे नाजुक गुलाब के साथ होते हैं काँटे

शायद जैसे काँटों की चुभन में ही
होता है फ़ूलों की नरमी का अहसास
वैसे ही अच्छाई की सही जरूरत
तो बुराई के बीच ही होती है

5 comments:

  1. दर्शन का पुट है भाई…सच कहा और जानदार कहा…>

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  2. बहुत चॊटॆ में एक बङी सच्चाई कही है.. ऐसा शायद इसलिये कि हम गलत-सही में फ़र्क कर सकें.. और सही को अपना कर गलत त्याग सकें..

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  3. अंतर्निहित भाव अच्छे हैं.

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  4. दिव्याम, मान्या, लालाजी,

    आप लोगों की टिप्पणी और प्रोत्साहन का हार्दिक धन्यवाद ...
    कृपया ऎसा ही स्नेह बनाये रखें

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  5. बहुत ही खूब्सूरती से सच बयान किया है आप्ने!

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....