Tuesday, March 27, 2007

उपमा मुझे बहुत पसंद है...

यह जानकर की घर में आज उपमा बना
मन हो गया प्रसन्न जो था कुछ अनमना

अपने आप में ही पूर्ण होता है उपमा
नहीं चाहिये इसे रंग-बिरंगी सब्जियों का साथ
बस सूजी को देशी घी में थोड़ी देर तक
मातृप्रेम रूपी हल्की आँच में पकाईये
माँ के समान शीतल थोड़ा दही मिलाईये
माँ की डाँट जैसी मीठी नीम के साथ
माँ की खुशबू लिये राई का तड़का लगाईये

लीजिये हो गया उपमा तैयार
न तो इतना तरल की समेटा न जाये
और न ही इतना शुष्क की खाया न जाये
बिलकुल माँ के मन की तरह
अनुशासित परंतु संवेदनशील

माँ के पास ले जाता है उपमा
दूजा नहीं कोई है तेरे जैसा
तुझे कैसे दूँ किसी और की उपमा

उपमा का माँ से गहरा संबंध है
और अब यह कोई राज नहीं
की उपमा मुझे बहुत पसंद है

Thursday, March 15, 2007

कुछ मन के ख्याल..

तोड़कर मर्यादा हवा पत्तों को यूँ न उड़ा ले जाती
अगर शाखें पत्तों को सिद्दत से संभाले होतीं

तुम अपनी बात दूसरों को जरूर सुना पाते
अगर आवाज तुमने अपनी थोड़ी भी सुनी होती

रुका नहीं मैं आज उस तड़पते इंसान के लिये
गर है तड़प तो रुकुँगा कल हर इंसान के लिये


मैने कब चाहा की दुनियाँ डरे मुझसे
पर झुकी गर्दन अक्सर ही कटी है मेरी


जला हूँ हर बार जो पैमाना बनाया दूसरों को मेंने
खिला हूँ हर बार जब पैमाना मैं खुद बना होता हूँ

आप किसी के लिये कुछ करें ये अच्छी बात है
वो स्वयं के लिये कुछ कर सके ये सच्ची बात है