Friday, April 13, 2007

न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ...

संस्कार से न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ वह
भाग्यवादी और धार्मिक नहीं था
धर्म और इंसानियत को ही
भगवान की पूजा मानता
समाज को बदलने का उसका
जोश देखते ही बनता
अन्याय के प्रति उसका
रोष चकित करता


पर धीरे-धीरे उसने जाना
महत्व इस बात का नहीं
कि कोई क्या बोल रहा है
महत्व इस बात का है
कि वह कौन है और
कहाँ से बोल रहा है


इंसानियत को पूजा मानने वाला
कभी-कभी थक जाने पर
चिड़कर कहता
सबकुछ अपने हाथ में नहीं होता
भाग्य भी भला कोई चीज़ है

भगवान की मर्जी के बिना
एक पत्ता भी नहीं हिलता

पर जैसे हारना तो
वह जानता ही ना था
संघर्ष को ही जीवन मानता
पूछने पर कहता
यह कोई संकल्प नहीं है
पर थक कर, हार हम जायें
ऎसा कोई विकल्प नहीं है

3 comments:

  1. अच्छे भाव हैं, भाई!!

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  2. विकल्प कारण है कमजोरी का, संकल्प उसे दूर करने का साधन ।
    अच्छा लगा

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  3. लालाजी और तिवारी जी,

    आपकी टिप्पणी का बहुत धन्यवाद !!

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....