Saturday, August 18, 2007

शेर और भैंस...

रोज-रोज की मारामारी से तंग आकर
भैंसों ने सोचा चलो शेरों से संधि की जाये
शेरों की जरूरत को ध्यान में रखते हुये
तय हुआ कि रोज दो भैंसें शेरों को सौंप दी जायेगीं
जानकर शेरों का चेहरा खिल गया
सोचने लगे चलो बैठे-बैठे खाने को मिल गया
उधर भैंसों के झुंड भी निश्चिंत हो जंगल में चरने लगे
डर को अपने जीवन से हमेशा के लिये हरने लगे
पर यह शांति कुछ दिनों की मेहमान थी
अपने स्वभाव के अनुसार

शेरों ने भैंसों पर फ़िर हमला कर दिया
कोई और रास्ता ना होता देख
भैंसों ने तय किया कि अब 

शेरों से संधि नहीं
एकजुटता के साथ मुकाबला किया जायेगा
धीरे-धीरे फ़िजा़ बदली

अब भैंसें मरने की बजाय शहीद होने लगीं
उनके बच्चों की आँखों में डर के बजाय वीरता दिखने लगी
शेरों की क्या कहें

आजकल वो भी झुंड में चल रहें हैं
शेर तो कम कुछ-कुछ
भैंसों से दिख रहें हैं

7 comments:

  1. सरल भाषा में बहुत गहरी बात कह गए हो रीतश। अंदाज़ भी बड़ा अच्छा लगा।
    ऐसे ही लिखते रहो।
    कविता के लिए धन्यवाद!
    महावीर शर्मा

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  2. अब हुई न सही कविता वा्ली बात, एक गहरा संदेश बिम्बों के माध्यम से. यही तो लेखनी का कर्तव्य है. बधाई, लिखते रहें.

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  3. Ultimate!!!
    प्रारंभ से ही आपकी कृति पढ़ता रहा हूँ… एक सच्ची व मुखर भावना का संगम हर कविता में झलकता है…
    बहुत सुंदर!!!

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  4. wah,kya bat hai. isee tarah likhate rahoge to ek din bahut nam karoge. dher si shubhkamnae.

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  5. बहुत सुन्दर। हास्य और व्यंग्य की इस सफल प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई।

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....