Wednesday, January 28, 2009

दशानन...


कैसे राम ने जीता रावण
कैसे राम बने जगदीश
शीश एक क्यूँ जीत ना पाया
दस सिर लेकर भी दसशीश
निश्छल मन और निर्मल ह्रदय
जहाँ राम की ढाल बने
मलिन ह्रदय और कपट वहीं पर
दशानन का काल बने
बुद्धी-कौशल और राजनीति का
जहाँ रावण ने अभिमान किया
भेज अनुज को उसे सीखने
राम ने उसको मान दिया
हर बुराई तुम यहाँ देख लो
दस सिर लेकर आती है
पर धर्मवीर रघुवीर के आगे
वह नहीं टिक पाती है

Thursday, January 08, 2009

साथ उसके आसमाँ है...

पाया नहीं यह ज्ञान से
समझा नहीं विज्ञान से
यह नहीं कोई कला
जिसको तराशा ध्यान से
संस्कारों से मिली जो
यह तो बस एक भावना है
जिसने दिया विश्वास मुझको
इंसान आता है जगत में
हाथ में क्षमता लिये
कोई शिखर ऎसा नहीं
जिसे वो पा सकता नहीं


आदमी कुछ भी नहीं
उसका पता है वह घड़ी

जिसमें है बीता वक्त उसका
हमे तो बस यह चाहिये
अविरत चली इस श्रंखला की
हम बने सुंदर कड़ी

पंछी नहीं टिकता वहाँ

उड़ना जहाँ वह सीखता है
पर जाता नहीं है वह अकेला
साथ उसके आसमाँ है
अब तो बस यह देखना है
कितना वो इसमें जोड़ता है
अगली कड़ी का आसमाँ

सुंदर वो कितना छोड़ता है